

हाँ में रुक गयी…
भागते भागते,
खुद से, लोगों से…
अपनों से, परायों से,
में थक गई
में रुक गयी…
में रुक गयी ये सोच के,
कहीं खुद से ना दूर चली जाऊँ,
में रुक गयी ये सोच के,
कहीं भीड़ में बस भीड़ ना होके रह जाऊँ
कहीं अपने आप में तुमको, और तुम में खुद को ढूँढने बैठूं
पर जब से रुकी हूं,
तुम मानो ना मानो,
समंदर सा सैलाब आता है,पर बहाता नहीं
सूरज की कड़क धूप अब चुभती नहीं
हवाओं में अपने लिए प्यार ढूंढ लेती हूं
सुबह की पहली किरणों में दुआए ढूंढ लेती हूं
अब ना दरवाजे पे किसी के आने का इंतजार है
और ना ही घड़ी के सुइयों से हमे प्यार है
अब वक्त की नजाकत नहीं, ठहराव अच्छा लगता है
किसी में डूबना नहीं, खुद को पाना अच्छा लगता है
जब से रुका है, खुद को पहचानने लगी हू
अब आईना नहीं कहता तू खूबसूरत है
दिल से आवाज आती है तू बस तू है
हाँ इसीलिये में रुक गयी…
They Call Me Nari
Hi! I am Anushree Dash…
Freethinker,
1 Part Entrepreneur
2 Parts Blogger
3 Parts photographer
4 Parts explorer, Too many Parts.
A free-spirited,non-conformist,independent,adventurous,boho soul and an admirer of life.Loves my Indian roots, Culture, Aesthetic Living, Saree, Poetry …